The Single Best Strategy To Use For सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में रोचक तथ्य

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एक बार कुंती नामक राज्य में महर्षि दुर्वासा पधारे. महर्षि दुर्वासा बहुत ही क्रोधी प्रवृत्ति के ऋषि थे, कोई भी भूल होने पर वे दंड के रूप में श्राप दे देते थे, अतः उस समय उनसे सभी लोग भयभीत रहते थे.

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“कर्ण द्रोपदी को पसंद करता था और उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था”

जिसमे अर्जुन धनुर्धन प्रभावित हुए, अर्जुन के कारनामे को पार करते हुए तभी कर्ण ने अर्जुन को एक द्वन्दवयुद्ध की चुनौती दी, परन्तु कृपाचार्य ने ये कह कर चुनौती ठुकरा दी की राजकुमार को सिर्फ एक राजकुमार ही चुनौती दे सकता है

ये बात कर्ण को अंदर तक आहात करती है, और यही वजह बनती है कर्ण की अर्जुन के खिलाफ खड़े होने की. दुर्योधन ये देख मौके का फायदा उठाता है उसे पता है कि अर्जुन के आगे कोई भी नहीं खड़ा हो सकता है तब वो कर्ण को आगे रहकर मौका देता है वो उसे अंग देश का राजा बना देता है जिससे वो अर्जुन के साथ युद्ध करने के योग्य हो जाता है. कर्ण इस बात के लिए दुर्योधन का धन्यवाद करता है और उससे पूछता है कि वो इस बात का ऋण चुकाने के लिए क्या कर सकता है, तब दुर्योधन उसे बोलता है कि वो जीवन भर उसकी दोस्ती चाहता है. इसके बाद से दोनों पक्के दोस्त हो जाते है.

दानवीर कर्ण का अंतिम दान  उसका सोने का दांत था.

आज भी लाखों हिन्दुओं के लिए कर्ण एक ऐसा योद्धा है जो जीवन भर दुखद जीवन जीता रहा। उसे एक महान योद्धा माना जाता है, जो साहसिक आत्मबल युक्त एक ऐसा महानायक था जो अपने जीवन की प्रतिकूल स्थितियों से जूझता रहा।

बहुत कम लोग कर्ण के बारे में बात करते है और कम लोग ही इनके जीवन के बारे में जानते है.

राजन इसका अर्थ हुआ कि हम खाली हाथ ही लौट जाए? किन्तु इससे आपकी कीर्ति धूमिल हो जाएगी. संसार आपकों धर्म विहीन राजा के रूप में याद रखेगा, यह कहते हुए वे लौटने लगे.

नासा की सौर गतिविधि Source वेधशाला द्वारा लिया गया २०१० में लिया गया सूर्य का एक चित्र

गंगाजी में बहते कर्ण को महाराज धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने गोद ले लिया. तथा उसका लालन पोषण किया.

यह व्रत सावन मास शुरू होने से पहले आता है इसीलिए यह व्रत अधिक चमत्कारी माना गया है। तथा यह व्रत माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है, इस दिन मुख्य रूप से मां पार्वती की पूजा की जाती है। आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी के इस व्रत को मंगला तेरस के नाम से भी जाना जाता है। 

कर्ण की शिक्षा अपने अन्तिम चरण पर थी। एक दोपहर की बात है, गुरु परशुराम कर्ण की जंघा पर सिर रखकर विश्राम कर रहे थे। कुछ देर बाद कहीं से एक बिच्छू आया और उसकी दूसरी जंघा पर काट कर घाव बनाने लगा। गुरु का विश्राम भंग ना हो इसलिए कर्ण बिच्छू को दूर ना हटाकर उसके डंक को सहता रहा। कुछ देर में गुरुजी की निद्रा टूटी और उन्होनें देखा की कर्ण की जाँघ से बहुत रक्त बह रहा है। उन्होनें कहा कि केवल किसी क्षत्रिय में ही इतनी सहनशीलता हो सकती है कि वह बिच्छु डंक को सह ले, ना कि किसी ब्राह्मण में और परशुरामजी ने उसे मिथ्या भाषण के कारण श्राप दिया कि जब भी कर्ण को उनकी दी हुई शिक्षा की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, उस दिन वह उसके काम नहीं आएगी।

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